कविता 'छाया मत छूना' में कवि गिरिजा कुमार जी यथार्थ के पूजन को इसलिए श्रेयस्कर मानते हैं। क्योंकि यथार्थ का सामना करके ही व्यक्ति जीवन को सफल व सुखी बना सकता है। अतीत की स्मृतियों में खोए रहने से केवल दुख और पीड़ा का अहसास होता है। वर्तमान में यथार्थ में आने वाली कठिनाइयों का कठोरता से सामना व संघर्ष करके जीवन बेहतर हो सकता है। यथार्थ से पलायन कर विगत में खोए रहना हितकार नहीं है। यथार्थ से रूबरू होना ही जीवन का सत्य है। कल्पनाओं में जीना तो यथार्थ से मुंह छुपाने जैसा है। अतः वर्तमान में यथार्थ का साहस से सामना करना ही श्रेयस्कर है।