कविता 'छाया मत छूना' में कवि 'गिरिजा कुमार माथुर' द्वारा रचित ये पंक्ति 'जितना ही दीड़ा तू, उतना जितना ही अधिक धन, दौलत, सुख-ऐश्वर्य व मान-सम्मान पाने के लिए भाग-दौड़ करता है अर्थात प्रयत्न करता है उतना ही अधिक ये चीज़े उसे भरमाती हैं। मृगतृष्णा के समान उससे दूर भागती रहती हैं। ये मानव को जीवन पर्यंत छलती रहती हैं। कभी व्यक्ति इन्हें पाने के लिए दुखी रहता है और कभी इनके न मिलने पर दुखी रहता है। ये चीजें मानव को जीवन भर अपने पीछे दौड़ाती रहती हैं।