‘जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी' से 'छाया मत छूना’ कविता के कवि का अभिप्राय जीवन में अपनी प्रिया के साथ व्यतीत किए गए सुखद क्षणों से है। स्मृतियों में अपनी प्रेयसी के तन की सुगंध कवि के मन-तन दोनों को ही सराबोर कर देती है। चाँदनी रात में प्रेयसी के बालों में गुथे पुष्पों की मनभावन सुगंध का स्मरण हो आता है। अतीत की ये स्मृतियाँ कभी वास्तव में मधुर रही होंगी, किंतु बिछोह की स्थिति में ये वर्तमान में पीड़ा ही भरने का कार्य करती हैं।