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छाया मत छूना' में कवि 'छाया' किसे कहता है और क्यों?

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कवि गिरिजा कुमार माथुर 'छाया' विगत समय में बीती हुई स्मृतियों को कहते हैं, जो अनेक बार वर्तमान समय में भी मानव-मस्तिष्क में छाई रहती हैं। ये यादें ठीक परछाई की तरह मानव का पीछा नहीं छोड़ती हैं। वर्तमान में भी मृग-मरीचिका की तरह भ्रमित करती हैं, इसलिए कवि ने इन्हें 'छाया' कहा है। ये स्मृतियों छाया की तरह मन में विचरित करती हुई वर्तमान जीवन को भी दुखी कर देती हैं।

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