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पाँयनि नूपुर मंजु बजै, कटि किंकिनि कै धुनि की मधुराई।साँवरे अंग लसै पट पीत, हिये हुलसै बनमाल सुहाई।

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इन पंक्तियों में कवि ने श्रृंगार रस का प्रयोग किया है। उन्होंने पायल और कमरघनी से निकलने वाले संगीत की मधुरता का चित्रण किया है। इसके बाद उन्होंने साँवले अंग पर पीले वस्त्रों की शोभा का बखान किया है। साथ में फूलों की माला का बखान भी किया है। इसमें तरह-तरह के अलंकारों का प्रयोग हुआ और तुकबंदी भी अच्छी की गई है।

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