कविता 'छाया मत छूना' में कवि ने प्रभुता की कामना को मृगतृष्णा के समान बताया है जो बिलकुल उचित है। मैं इसके पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत कर रही हूँ। प्रभुता, यानी सत्ता या बड़प्पन की लालसा के पीछे व्यक्ति दौड़ता रहता है। उसे पाने के लिए वह वर्तमान के सुख भी नहीं भोग पाता है। प्रभुता एक छलावे की तरह मानव को छलती रहती है। समय पर प्रभुता, धन, वैभव और इच्छित प्राप्त न होने पर मानव दुखी हो जाता है। केवल प्रभुता की कल्पना में खोए रहने से वह यथार्थ से दूर हो जाता है। जबकि जीवन में यथार्थ का सामना करके ही सुख मिलते हैं।