प्रस्तुत पदों के अध्ययन से पता चलता है कि लक्ष्मण के कथन में गहरा व्यंग्य छिपा हुआ है। लक्ष्मण परशुराम से कहते हैं कि श्री राम ने इस धनुष को छुआ ही था कि यह टूट गया। परशुराम की डींगो को सुनकर लक्ष्मण पुनः कहते हैं कि हे मुनि! आप अपने आप को एक बड़ा योद्धा समझते हैं और फूँक मारकर पहाड़ उड़ाना चाहते हैं। हम भी कोई छुईमुई के पेड़ नहीं है जो अंगुली के इशारे से मुरझा जाए। आपने धनुष-बाण व्यर्थ ही धारण किए हुए हैं क्योंकि आपका एक वचन ही करोड़ों वज्रों के समान है।