'नमक का दारोगा' प्रेमचन्द द्वारा रचित एक आदर्शवादी कहानी है जिसके सर्वाधिक प्रभावशाली पात्र मुंशी वंशीधर हैं। वे ही इस कहानी के नायक हैं तथा सम्पूर्ण घटनाओं के केन्द्र - बिन्दु हैं। उनके चरित्र के उज्ज्वल पक्ष को प्रस्तुत करना ही कहानीकार का मूल उद्देश्य है। वंशीधर एक योग्य, कर्त्तव्यपरायण, ईमानदार, नैतिकतावादी, स्वाभिमानी एवं साहसी व्यक्ति हैं। उनकी चारित्रिक दृढ़ता अनुकरणीय है।
प्रेमचन्द जी ने उनके रूप में एक आदर्श पात्र की परिकल्पना की है तथा कहानी से यह संदेश दिया है कि जो सत्य, न्याय, ईमानदारी एवं नैतिकता पर टिका रहता है, अन्तिम विजय उसी की होती है। मुंशी वंशीधर ने पण्डित अलोपीदीन को नमक की चोरबाजारी करते हुए गिरफ्तार किया था। उन्हें बड़ी रिश्वत देने का प्रयास किया गया पर व डिगे नहीं।
अलोपीदीन अपने धन - बल से अदालत से छूट गए किन्तु उनके हृदय पर वंशीधर की ईमानदारी की ऐसी छाप पड़ी कि उन्होंने वंशीधर को ऊँचे वेतन पर अपनी जमींदारी का मैनेजर नियुक्त कर दिया। इस प्रकार सत्य एवं ईमानदारी की विजय का उद्घोष करते हुए प्रेमचन्द ने इसे आदर्शवादी कहानी के रूप में प्रस्तुत किया है। यही कारण है कि कहानी का पात्र मुंशी वंशीधर हमें सबसे अधिक प्रभावित करता है।