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मृगतृष्णा किसे कहते हैं, कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?

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मृगतृष्णा का साधारण अर्थ है भ्रम या धोखा। गर्मी के मौसम में सूर्य की किरणें रेगिस्तान की रेत पर चमकता हुआ जल प्रतीत होती हैं और प्यासा मृग धोखे के कारण इसे जल समझकर इसको प्राप्त करने के लिए इसके पीछे दौड़ता है। किंतु कविता में इसका प्रयोग सुख-सुविधाओं के लिए हुआ है। व्यक्ति प्रभुता एवं सुख सुविधा की प्राप्ति हेतु दिन-रात इसके पीछे भागता है किंतु उसकी यह दौड़ अंतहीन है। और एक दिन वह थक कर गिर जाता है इसलिए कविता में संदेश दिया गया है कि तृष्णा की भावना से बचकर रहना चाहिए।

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