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'पढ़ना - लिखना सब अकारथ गया।' वृद्ध मुंशीजी द्वारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गयी थी। अपने, निजी अनुभवों के आधार पर बताइए
(क) जब आपको पढ़ना - लिखना व्यर्थ लगा हो।
(ख) जब आपको पढ़ना - लिखना सार्थक लगा हो।
(ग) पढ़ना - लिखना' को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा: साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं ?)

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पढ़ना - लिखना सब अकारथं गया का तात्पर्य है कि तुम्हारी शिक्षा व्यर्थ चली गयी। शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान देकर विवेक प्रदान करती है, जिससे व्यक्ति में अपना भला - बुरा सोचकर निर्णय लेने की क्षमता आती है। किन्तु वंशीधर ने इतनी अच्छी नौकरी पाकर भी विवेक से काम नहीं लिया और अलोपीदीन जैसे धनवान् व्यक्ति को गिरफ्तार कर उनसे बैर मोल ले लिया। यह बात वृद्ध मुंशीजी (वंशीधर के पिता) के गले नहीं उतर रही थी। इतना अच्छा पद मिलने के बाद भी जो ईमानदारी दिखाता हो, फिर उसे वृद्ध मुंशीजी मूर्ख तो मानेंगे ही।

(क) जब आपको पढ़ना - लिखना व्यर्थ लगा हो। ... कभी - कभी व्यक्ति को ऐसा लगता है कि उसकी पढ़ाई - लिखाई व्यर्थ है क्योंकि जीवन के वास्तविक अनुभव से वह शून्य है। बाहुबली जब किसी पढ़े - लिखे को धमकाते हैं और अपना रौब गालिब करते हैं, तब मुझे लगता है कि पढ़ाई - लिखाई व्यर्थ है। गुण्डों की समाज में धाक है, पढ़े - लिखों को कोई पूछता नहीं।

(ख) जब आपको पढ़ना - लिखना सार्थक लगा हो मेरे परिवार में मेरे पिता एक सफल वकील हैं। बड़े भाई डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर हैं और मेरी माँ भी कॉलेज की प्रधानाचार्या हैं। इसे देखकर मुझे लगा कि शिक्षा प्राप्त करना कभी व्यर्थ नहीं हो सकता।

(ग) पढ़ना - लिखना' शिक्षा के अर्थ में प्रयुक्त है, साक्षरता के अर्थ में नहीं। शिक्षा और साक्षरता समानार्थी नहीं हैं। जिसे केवल अक्षर ज्ञान हो और जो अपना नाम लिख लेता हो, किताब पढ़ सकता हो वह साक्षर होता है, किन्तु जो ज्ञानवान् है, शिक्षित है, विवेकवान् है उसे लोग पढ़ा - लिखा कहते हैं।

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