वृद्ध मुंशीजी ने अपने बेटे वंशीधर को समझाते हुए कहा कि नौकरी में 'ओहदा' उतना महत्त्वपूर्ण नहीं जितनी महत्त्वपूर्ण ऊपरी आमदनी है। 'ओहदा' तो पीर का मजार है जिसके दर्शन करने लोग आते हैं पर असली कमाई तो मजार पर चढ़ने । वाली चादरों और चढ़ावे से होती है, अतः इसी पर निगाह रखनी चाहिए। उनके कथन का आशय यह था कि ओहदा चाहे छोटा ही क्यों न हो पर ऊपरी आमदनी अधिक हो, ऐसी नौकरी तुम्हें अपने लिए तलाशनी है।