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जिसके अरुण कपोलों की मतवाली सुंदर छाया में।      अनुरागिणी उषा लेती थी निज सुहाग मधुमाया में।

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कभी कोई ऐसा भी था जिसके चेहरे को देखकर कवि को प्रेरणा मिलती थी। जैसे एक नई सुबह किसी मनुष्य को हर दिन अपने कर्म को करने के लिए उद्धत करती है, वैसे ही कवि की प्रेरणा उन्हें उनके लक्ष्य की ओर चलते रहने के लिए उद्धत करती थी।

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