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गाधिसूनु कह हृदय हसि मुनिहि हरियरे सूझ।     अयमय खाँड़ न ऊखमय अजहुँ न बूझ अबूझ॥

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ऐसा सुनकर विश्वामित्र मन ही मन हँसे और सोच रहे थे कि इन मुनि को सबकुछ मजाक लगता है। यह बालक फौलाद का बना हुआ और ये किसी अबोध की तरह इसे गन्ने का बना हुआ समझ रहे हैं। विश्वामित्र को परशुराम की अनभिज्ञता पर तरस आ रहा है। परशुराम को शायद राम और लक्ष्मण के प्रताप के बारे में नहीं पता है।

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