सूर के भ्रमरगीत की सबसे प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें गोपियों की अभिव्यंजना हुई है। इस भ्रमरगीत में व्यंग्य, कटाक्ष, निराशा, प्रार्थना, पीड़ा, आस्था आदि अनेक भावों को अभिव्यक्त करने का सफल प्रयास हुआ है तथा साथ-साथ ब्रजभाषा का भी सफल प्रयोग है। भाषा में माधुर्य गुण विद्यमान है। कवि ने अनेक अलंकारों का प्रयोग करके भाषा को अलंकृत किया है।