संसारसागरस्य नायकाः
पाठ का परिचययह पाठ अनुपम मिश्रा द्वारा लिखित 'आज भी खरे हैं तालाब' में संकलित 'संसार सागर के नायक' नामक अध्याय से लिया गया है।लेखक ने यहाँ पानी के लिए मानव निर्मित तालाब, बावड़ी जैसे निर्माणों को संसार सागर के रूप में चित्रित किया है।इस पाठ में, विलुप्त होते जा रहे पारम्परिक ज्ञान, कौशल एवं शिल्प के धनी गजधर के संबंध् में चर्चा की गयी है।
के आसन् ते अज्ञातनामानः? शतशः सहस्त्रशः तडागाः सहसैव शून्यात् न प्रकटीभूताः। इमे एव तडागाः अत्र संसारसागराः इति।एतेषाम् आयोजनस्य नेपथ्ये निर्मापयितृृणाम् एककम्, निर्मातृृणां च दशकम् आसीत्। एतत् एककं दशकं च आहत्य शतकं सहस्त्रं वा रचयतः स्म। परं विगतेषु द्विशतवर्षेषु नूतनपद्धत्या समाजेन यत्किञ्चित पठितम्। पठितेन तेन समाजेन एककं दशकं सहस्त्रकञ्च इत्येतानि शून्ये एव परिवर्तितानि। अस्य नूतनसमाजस्य मनसि इयमपि जिज्ञासा नैव उद्भूता यद् अस्मात्पूर्वम् एतावतः तडागान् के रचयन्ति स्म।एतादृशानि कार्याणि कर्तुं ज्ञानस्य यो नूतनः प्रविधि: विकसितः, तेन प्रविधनिाऽपि पूर्वं सम्पादितम् एतत्कार्यं मापयितुं न केनापि प्रयतितम्।
सरलार्थ: वे अज्ञात (अपरिचित) नाम वाले कौन थे?
सैकड़ों हज़ारों तालाब अचानक ही शून्य (खाली स्थान) से प्रकट नहीं हुए हैं। ये ही तालाब यहाँ संसार रूपी सागर हैं। इनकी योजना (कार्य) के पीछे बनवाने वालों की इकाई और बनाने वालों की दहाई थी। यह इकाई और दहाई मिलकर सैकड़ों अथवा हज़ारों को बनाते थे। परन्तु पिछले दो सौ वर्षों में नई पद्धति से समाज ने जो कुछ पढ़ा है, उस पढ़े हुए समाज से इकाई, दहाई और सैकड़ा ये शून्य में ही (समाप्ति में ही) बदल गए हैं। इस नए समाज के मन में यह जानने की इच्छा (जिज्ञासा) भी नहीं पैदा हुई कि इससे पहले इन तालाबों को किसने बनाया था। ऐसे कार्य करने के लिए ज्ञान की जो नई तकनीक विकसित हुई, उस तकनीक से भी पहले किए गए इस कार्य को नापने के लिए किसी ने भी प्रयत्न नहीं किया।
शब्दार्थ: |
भावार्थ: |
अज्ञातनामानः |
अज्ञात (अपरिचित) नाम वाले। |
शतशः |
सैकड़ों। |
सहस्त्रशः |
हज़ारों । |
तडागाः |
बहुत से तालाब। |
सहसैव |
अकस्मात्, अचानक ही। |
संसारसागराः |
संसार रूपी सागर (तालाब)। |
नेपथ्ये |
पर्दे के पीछे। |
निर्मापयितृृणाम् |
बनवाने वालों की। |
निर्मातृृणाम् |
बनाने वालों की। |
एककम् |
इकाई। |
दशकम् |
दहाई। |
आहत्य |
मिलकर (प्रारम्भ करके)। |
शतकम् |
सैकड़ा। |
सहस्त्राम् |
हशार। |
विगतेषु |
पिछले। |
द्विशतवर्षेषु |
दो सौ वर्षों में। |
नूतनपद्धत्या |
नई विधि से। |
शून्ये |
व्यर्थ में। |
जिज्ञासा |
जानने की इच्छा। |
उद्भूता |
उत्पन्न हुई, जागृत हुई। |
अस्मात्पूर्वम् |
इससे पहले। |
एतावतः |
इन (को)। |
रचयन्ति स्म |
बनाए थे। |
प्रविधि: |
तकनीक। |
सम्पादितम् |
किए गए। |
मापयितुम् |
मापने/नापने के लिए। |
प्रयतितम् |
प्रयत्न |
अद्य ये अज्ञातनामानः वर्तन्ते, पुरा ते बहुप्रथिताः आसन्। अशेषे हि देशे तडागाः निर्मीयन्ते स्म, निर्मातारोऽपि अशेषे देशे निवसन्ति स्म।
गजधर: इति सुन्दरः शब्दः तडागनिर्मातृृणां सादरं स्मरणार्थम्। राजस्थानस्य केषुचिद् भागेषु शब्दोऽयम् अद्यापि प्रचलति। कः गजधर:? यः गजपरिमाणं धरयति स गजधर:। गजपरिमाणम् एव मापनकार्ये उपयुज्यते। समाजे त्रिहस्त-परिमाणात्मिकीं लौहयष्टिं हस्ते गृहीत्वा चलन्तः गजधरा: इदानीं शिल्पिरूपेण नैव समादृताः सन्ति। गजधर:, यः समाजस्य गाम्भीर्यं मापयेत् इत्यस्मिन् रूपे परिचितः।
सरलार्थ: आज जो अपरिचित नाम वाले हैं अर्थात् जिन्हें कोई नहीं जानता, पहले वे बहुत प्रसिद्ध थे। निश्चय से सम्पूर्ण देश में तालाब बनाए जाते थे, बनाने वाले भी सम्पूर्ण देश में रहते थे।
गजधर यह सुन्दर शब्द तालाब बनाने वालों (निर्माताओं) के सादर स्मरण के लिए है। राजस्थान के कुछ भागों में यह शब्द आज भी प्रचलित है। गजधर कौन होता है? जो गज के माप को धारण करता है वह गजधर होता है। गज का माप ही नापने के काम में उपयोगी होता है। समाज में तीन हाथ के बराबर (नाप वाली) लोहे की छड़ को हाथ में लेकर चलते हुए गजधर आजकल कारीगर के रूप में आदर नहीं पाते हैं। गजधर अर्थात् जो समाज की गम्भीरता (गहराई) को नापे (नाप ले), इसी रूप में जाने जाते हैं।
शब्दार्थ: |
भावार्थ: |
अद्य |
आज। |
बहुप्रथिताः |
बहुत प्रसिद्ध्। |
अशेषे |
सम्पूर्ण। |
निर्मीयन्ते स्म |
बनाए जाते थे। |
निर्मातारः |
बनाने वाले। |
गजधर: |
गज (लम्बाई, चैड़ाई, गहराई, मोटाई मापने की लोहे की छड़) को धारण करने वाला व्यक्ति। |
तडागनिर्मातृृणां |
तालाब बनाने वालों के। |
स्मरणार्थम् |
यादों के लिए। |
केषुचिद् |
कुछ (किन्हीं) में। |
प्रचलति |
प्रचलित है। |
गजपरिमाणम् |
गज के नाप को। |
धारयति |
धारण करता है। |
मापनकार्ये |
नापने के कार्य में। |
उपयुज्यते |
उपयोग किया जाता है। |
त्रिहस्तपरिमाणात्मिकीम् |
तीन हाथ के नाप की। |
लौहयष्टिम् |
लोहे की छड़। |
चलन्तः |
चलते हुए। |
समादृताः |
आदर को प्राप्त। |
गाम्भीर्यम् |
गहराई। |
मापयेत् |
नाप ले। |
गजधरा: वास्तुकाराः आसन्। कामं ग्रामीणसमाजो भवतु नागरसमाजो वा तस्य नव-निर्माणस्य सुरक्षाप्रबन्ध् नस्य च दायित्वं गजधरा: निभालयन्ति स्म। नगरनियोजनात् लघुनिर्माणपर्यन्तं सर्वाणि कार्याणि एतेष्वेव आधृतानि आसन्। ते योजनां प्रस्तुन्वन्ति स्म, भाविव्ययम् आकलयन्ति स्म, उपकरणभारान् संगृह्णन्ति स्म। प्रतिदाने ते न तद् याचन्ते स्म यद् दातुं तेषां स्वामिनः असमर्थाः भवेयुः। कार्यसमाप्तौ वेतनानि अतिरिच्य गजधरेभ्यः सम्मानमपि प्रदीयते स्म।
नमः एतादृशेभ्यः शिल्पिभ्यः।
सरलार्थ: गजधर वास्तुकार (नक्शा तथा भवन आदि बनाने वाले) थे। चाहे ग्रामीण समाज हो अथवा शहरी समाज, उसके नवनिर्माण की और सुरक्षा प्रबन्ध् की जिम्मेदारी गजधर (ही) निभाते थे। नगर की योजना से लेकर छोटे से निर्माण तक सारे कार्य इन्हीं पर ही आधरित थे। वे योजना को रखते थे, आने वाले खर्च का अनुमान करते थे, साधन सामग्री को इक्ट्ठा करते थे। बदले में वे वह (राशि, पैसा) नहीं माँगते थे जिसे देने में उनके मालिक असमर्थ हों। काम के अन्त में वेतन के अतिरिक्त (अलावा) गजधरों को सम्मान भी दिया जाता था।
ऐसे शिल्पियों (कारीगरों) को नमस्कार हो (है)।
शब्दार्थ: |
भावार्थ: |
वास्तुकाराः |
भवन आदि का निर्माण करने वाले। |
आसन् |
थे। |
कामम् |
चाहे, भले ही। |
भवतु |
होवे। |
दायित्वं |
जिम्मेदारी। |
निभालयन्ति स्म |
निभाते थे। |
नगरनियोजनात् |
नगर योजना से। |
आधृतानि |
आधरित। |
प्रस्तुन्वन्ति स्म |
प्रस्तुत करते थे। |
भाविव्ययम् |
आने वाले खर्च को। |
आकलयन्ति स्म |
अनुमान करते थे। |
उपकरणभारान् |
साधन सामग्री को। |
संगृह्णन्ति स्म |
संग्रह करते थे। |
प्रतिदाने |
बदले में। |
याचन्ते स्म |
माँगते थे। |
दातुम् |
देने में। |
स्वामिनः |
मालिक लोग। |
कार्यसमाप्तौ |
काम की समाप्ति पर। |
अतिरिच्य |
अतिरिक्त। |
प्रदीयते स्म |
दिया जाता था।
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