कः रक्षति कः रक्षितः
पाठ का परिचययह पाठ पर्यावरण पर केन्द्रित है। प्लास्टिक पर्यावरण के लिए घातक है, लेकिन इसका हमारे जीवन में इस सीमा तक प्रवेश हो चुका है कि इसके बिना दैनिक जीवन चलाने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसके बढ़ते हुए उपयोग पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए, पर्यावरण तथा प्रदूषण की समस्या के प्रति संवेदनशील समझ विकसित करने का इस पाठ में प्रयास किया गया है।
(काश्चन बालिकाः भ्रमणाय निर्गताः परस्परमालपन्ति)
रिपन्ची - परमिन्दर्! परमिन्दर्! एहि आगच्छ, उपवनं प्रविशामः।
परमिन्दर् - अरे! उपवनस्य द्वारे एव प्लास्टिकस्यूतकानि क्षिप्तानि इतस्ततः विकीर्णानि।
कचनार् - जनाः प्रमादं कुर्वन्ति। प्लास्टिकपुटकेषु खाद्यवस्तूनि गृहीत्वा भक्षयन्ति, परं तानि पुटकानि मार्गे यत्रा कुत्रापि क्षिपन्ति।
रोजलिन् - महती इयं समस्या। अपि प्रविशामः?
रिपन्ची - अस्तु प्रविशामः।
(सर्वाः उपवने प्रविशन्ति।)
कचनार् - कुत्र उपविशामः?
रिपन्ची - अस्मिन् काष्ठपीठे उपविशामः।
(सर्वाः उपविशन्ति)
सरलार्थ:
रिपन्ची - हे परमिन्दर्! हे परमिन्दर्! इधर आ, बगीचे में चलते हैं।
परमिन्दर् - अरे! बगीचे के गेट (द्वार) पर ही फेंकी गईं प्लास्टिक की थैलियाँ इधर-उधर बिखरी हैं।
कचनार् - लोग आलस्य करते हैं। प्लास्टिक की थैलियों में खाने योग्य पदार्थ को लेकर खाते हैं, परन्तु उन थैलियों को रास्ते में जहाँ-कहीं भी फेंक देते हैं।
रोजलिन् - यह बहुत बड़ी समस्या है। हम चलते हैं।
रिपन्ची - ठीक है, चलते हैं।
(सभी लड़कियाँ बगीचे में चलती हैं।)
कचनार् - कहाँ बैठते हैं? (बैठें)
रिपन्ची - इस लकड़ीके बैञ्च् पर बैठते हैं।
(सभी बैठती हैं)
शब्दार्थ: |
भावार्थ: |
काश्चन |
कुछ। |
निर्गताः |
निकली हुईं। |
आलपन्ति |
बातचीत करती हैं। |
क्षिप्तानि |
फेंकी गईं। |
विकीर्णानि |
बिखरी हैं। |
प्रमादम् |
आलस्य (लापरवाही)। |
पुटकेषु |
छोटी थैली (पाउच)। |
पुटकानि |
थैलियाँ। |
महती |
बड़ी है। |
अस्तु |
ठीक है। |
काष्ठपीठे |
लकड़ी के बैंच। |
रिपन्ची - अपि पश्यथ, वयं यत्रोपविष्टाः तत्र कानि वस्तूनि सन्ति?
परमिन्दर् - आम्। आम्। बहूनि वस्तूनि परितो विकीर्णानि।
कचनार् - यथा स्यूतः, जलकूपी, कन्दुकम् इत्यादीनि।
सरलार्थ:
रिपन्ची - क्या तुम लोग देख रही हो? हम सब जहाँ बैठे हैं, वहाँ कौन-सी वस्तुएँ हैं?
परमिन्दर् - हाँ। हाँ। बहुत-सी वस्तुएँ चारों ओर बिखरी हैं।
कचनार् - जैसे थैली, पानी की बोतल, गेंद आदि।
शब्दार्थ: |
भावार्थ: |
पश्यथ |
देखो। |
यत्रोपविष्टाः (यत्र +उपविष्टाः) |
जहाँ बैठे हैं। |
स्यूतः |
थैला/थैली। |
जलकूपी |
पानी की बोतल। |
कन्दुकम् |
गेंद। |
रोजलिन् - हला, आत्मानमपि पश्य।
चेनम्मा - आम्। आम्। पश्यामि एव। मम सविधे कङ्कतम्, कुण्डलम्,केशबन्धः, घटिपट्टिका, कङ्कणम् इत्यादीनि सर्वाणि विराजन्ते। किमसि वक्तुकामा?
रिपन्ची - इदं ध्यातव्यं यद् एतानि सर्वाणि वस्तूनिः प्रायः प्लास्टिकेन निर्मितानि सन्ति।
कचनार् - पूर्वं तु प्रायः कार्पासेन, चर्मणा, लौहेन, लाक्षया, मृत्तिकया काष्ठेन वा निर्मितानि वस्तूनि एव प्राप्यन्ते स्म। अधुना तत् स्थाने प्लास्टिक-निर्मितानि वस्तूनि परितः विकीर्णानि सन्ति। एतानि अल्पमूल्यानि अपि सन्ति।
चेनम्मा - अहो! कलमस्तु विस्मृतः। कोऽपि एतत् अनुमातुं शक्नोति यत् एकस्मिन् कलमे कति मसियष्टयः प्रयुज्यन्ते।
सरलार्थ:
रोजलिन् - हे (हला)! अपने आपको भी देखो।
चेनम्मा - हाँ। हाँ। देखती ही हूँ। मेरे पास कंघा, कुण्डल (बालीद्ध, बालों का बन्धन, घड़ी की पट्टी, कंगन आदि सभी कुछ हैं। क्या कहना चाहती हो?
रिपन्ची - यह ध्यान देने योग्य है कि ये सारी वस्तुएँ अधिकतर प्लास्टिक से बनी हुई हैं।
कचनार् - पहले तो अधिकतर कपास से, चमड़े से, लोहे से, लाख से, मिट्टी से अथवा लकड़ी से बनी हुईं वस्तुएँ ही मिलती थीं। अब उसकी जगह पर प्लास्टिक से बनी हुई वस्तुएँ चारों ओर बिखरी हुई हैं। ये कम कीमत वाली भी हैं।
चेनम्मा - अरे! कलम तो याद ही नहीं रहा। कोई भी यह अनुमान कर सकता है कि एक कलम में कितनी रिफिल प्रयोग में लाई जाती हैं।
शब्दार्थ: |
भावार्थ: |
हला |
सखी के लिए सम्बोध्न जैसे 'अरी'। |
आत्मानम् |
अपने आपको। |
सविधे |
पास में। |
कङ्कतम् |
कंघा/कंघी। |
केशबन्ध्ः |
बालों का बन्धन (हेयर बैंड)। |
घटिपट्टिका |
घड़ी की पट्टी। |
कङ्कणम् |
कंगन। |
वक्तुकामा |
कहना चाहती। |
ध्यातव्यम् |
ध्यान देने योग्य। |
पूर्वम् |
पहले। |
कार्पासेन |
कपास से। |
लाक्षया |
लाख से। |
मृत्तिकया |
मिट्टी से। |
विकीर्णानि |
बिखरी हुई/फैली हुई। |
अल्पमूल्यानि |
कम कीमत की (वाली)। |
विस्मृतः |
भूल गया। |
अनुमातुम् |
अनुमान करने के लिए। |
मसियष्टयः ('मसियष्टि' का बहुवचन) |
रिफिल, जिसमें स्याही भरी रहती है। |
प्रयुज्यन्ते |
प्रयोग किए जाते हैं। |
परमिन्दर् - अनुमीयते यत् प्रत्येकं छात्रा प्रतिसप्ताहं स्वकलमे एकां मसियष्टिं पूरयति। तात्पर्यम् इदमस्ति यत् एकस्मिन्नेव वर्षे न्यूनान्न्यूनं प्रायः पञ्चाशत् मसियष्टयः तया प्रयुक्ताः भवन्ति।
चेनम्मा - परं किं वयम् एकस्मिन् वर्षे एकस्यैव कलमस्य प्रयोगं कुर्मः?
सामूहिकस्वरः - नहि नहि। वर्षे तु प्रायशः बहवः कलमाः विलुप्यन्ते।
रिपन्ची - एका छात्रा त्रिषु मासेषु एकं कलमं क्रीणाति। अर्थात् एकस्मिन् वर्षे चतुरः कलमान् क्रीणाति।
रोजलिन् - अपरं च कलमेन सह मसियष्टिः अपि प्लास्टिकावरणे समावेश्यते। तर्हि आहत्य प्रतिवर्षम् एका छात्रा प्रायः पञ्चाशन्मसियष्टीनां चतुर्भि: कलमैः चतुःपञ्चाशद्भि: आवरणैः प्रयोगं करोति।
सरलार्थ:
परमिन्दर् - अनुमान (लगता) है कि हर एक छात्रा प्रत्येक सप्ताह अपने कलम में एक रिफिल को डालती है। मतलब यह है कि एक ही वर्ष में कम से कम लगभग पचास रिफिल उसके द्वारा प्रयोग में लाई जाती हैं।
चेनम्मा - परन्तु क्या हम एक साल में एक ही कलम का प्रयोग करते हैं?
सामूहिक आवाज़ - नहीं नहीं। वर्ष में तो लगभग बहुत से कलम गुम हो जाते (खो जाते) हैं।
रिपन्ची - एक छात्रा तीन महीनों में एक कलम खरीदती है अर्थात् एक साल में चार कलमें खरीदती है।
रोजलिन् - और दूसरी बात (moreover) कलम के साथ रिफिल भी प्लास्टिक के खोल में डाले (बने) हुए होते हैं अर्थात् रखी होती हैं। तो कुल मिलाकर हर साल एक छात्रा लगभग पचास रिफिलों का चार कलमों से चौवन खोलों के द्वारा प्रयोग करती है।
शब्दार्थ: |
भावार्थ: |
पूरयति |
डालती है। |
न्यूनान्न्यूनम् |
कम से कम। |
तया |
उसके द्वारा। |
प्रयुक्ताः |
प्रयुक्त। |
प्रायशः |
प्रायः, लगभग। |
बहवः |
बहुत से। |
विलुप्यन्ते |
लुप्त हो जाते हैं, खो जाते हैं। |
क्रीणाति |
खरीदती है। |
चतुरः |
चार (को) । |
अपरं |
दूसरी ओर। |
आवरणे |
खोल-ट्यूब में। |
समावेश्यते |
डाली जाती है (बनाई जाती है) । |
चतुःपञ्चाशद्भिः |
चौवन (से)। |
आवरणैः |
खोलों से। |
आहत्य |
कुल मिलाकर |
कचनार् - भवतु, बहुध प्रयुक्तस्य प्लास्टिकस्य दूरगामिनः घातकाः परिणामाः वयं न दृष्टुं शक्नुमः। प्लास्टिकं कदापि न गलति, न च अपक्षीयते। यथा-अन्यानि वस्तूनि विनश्य मृत्तिकायां विलीयन्ते।
चेनम्मा - प्लास्टिकस्य मृत्तिकायां लयाभावात् अस्माकं पर्यावरणस्य कृते महती क्षतिः भवति।
रिपन्ची - एकेन पदार्थेन अपरः पदार्थः सृज्यते, अथवा विनष्टं वस्तु मृत्तिकायां मिलति। परं प्लास्टिके इयं प्रक्रिया असम्भवा एव।
परमिन्दर् - कल्पयतु, यदि शतं वर्षाणि यावत् प्लास्टिक-निर्मितानां पदार्थानां निर्माणप्रक्रिया पृथिव्यां प्रचलिष्यति तर्हि किं स्यात्?
(सर्वाः सखेदं विमृशन्ति।)
रोजलिन् - अत्र विषादेन किम्? सर्वप्रथमं तु शिक्षकाणां सहयोगेन प्लास्टिकस्य विविधपक्षा: विचारणीयाः। अस्माकं प्रयासोऽपि पर्यावरणस्य रक्षणे अपेक्षितः।
सरलार्थ:
कचनार् - ठीक है, बहुत प्रकार से प्रयोग किए जाने वाले प्लास्टिक के दूरगामी खतरनाक परिणामों को हम देख नहीं सकते हैं। प्लास्टिक कभी भी न गलता है और न ही नष्ट होता है। जैसे-दूसरी वस्तुएँ नष्ट होकर मिट्टी में मिल जाती हैं।
चेनम्मा - प्लास्टिक के मिट्टी में नष्ट न होने के कारण हमारे पर्यावरण के लिए बहुत हानि होती है।
रिपन्ची - एक पदार्थ से दूसरा पदार्थ बनता है, अथवा नष्ट हुई वस्तु मिट्टी में मिल जाती है। परन्तु प्लास्टिक में यह प्रक्रिया असम्भव ही है।
परमिन्दर् - कल्पना करो (सोचो), यदि सौ वर्ष तक प्लास्टिक से बनी हुई वस्तुओं के निर्माण का काम पृथ्वी पर चलेगा तो क्या होगा?
[सभी दुःख के साथ (दुःखपूर्वक) विचार करती हैं]
रोजलिन् - यहाँ दुःख से क्या लाभ? सबसे पहले तो शिक्षकों के सहयोग से प्लास्टिक के अनेक पक्षों पर विचार करना चाहिए। हमारा प्रयास भी पर्यावरण की रक्षा में आवश्यक है।
शब्दार्थ: |
भावार्थ: |
बहुध |
अधिकतर। |
प्रयुक्तस्य |
प्रयोग किए गए। |
घातकाः |
हानिकारक। |
गलति |
गलता है। |
अपक्षीयते |
नष्ट हो जाता है। |
विनश्य |
नष्ट होकर। |
विलीयन्ते |
विलीन हो जाते हैं। |
लयाभावात् (लय+अभावा) |
लीन/नष्ट न होने के कारण। |
महती क्षतिः |
बहुत बड़ी हानि। |
अपरः |
दूसरा। |
सृज्यते |
निर्मित किया जाता है। |
कल्पयतु |
कल्पना कीजिए। |
प्रचलिष्यति |
चलेगी। |
सखेदं |
दुःख के साथ। |
विमृशन्ति |
विचार करते हैं। |
विषादेन किम् |
दुःख करने से क्या (लाभ)। |
विचारणीयाः |
विचार करने योग्य। |
अपेक्षितः |
आवश्यक है। |