0 votes
84 views
in Discuss by (98.9k points)
edited
Sanskrit translation of chapter 10 नीतिनवनीतम्‌ in hindi class 8

1 Answer

0 votes
by (98.9k points)
selected by
 
Best answer

नीतिनवनीतम्‌

[प्रस्तुत पाठ “मनुस्मृति' के कतिपय श्लोकों का संकलन है जो सदाचार की दृष्टि से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। यहाँ माता-पिता तथा गुरुजनों को आदर और सेवा से प्रसन्‍त करने वाले अभिवादनशील मनुष्य को मिलने वाले लाभ की चर्चा की गई है। इसके अतिरिक्त सुख-दुख में समान रहना, अन्तरात्मा को आनन्दित करने वाले कार्य करना तथा इसके विपरीत कार्यों को त्यागना, सम्यक्‌ विचारोपरान्त तथा सत्यमार्ग का अनुसरण करते हुए कार्य करना आदि शिष्टाचारों का उल्लेख भी किया गया है।]



अभिवादनशीलस्य नित्य॑ वृद्धोपसेविन:।

चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशो बलम्‌ ॥1॥

अन्वय:

अभिवादनशीलस्य (नरस्य) नित्यं वृद्धोपसेविन: (च) तस्य चत्वारि- आयु:, विद्या, यशः बलम्‌ (च) वर्धन्ते।


सरलार्थ-

जो व्यक्ति (अपने माता-पिता को)नित्य प्रणाम करता है तथा बड़े-बूढ़ों की सेवा करता है, उस व्यक्ति की आयु, विद्या, यश और बल, ये चार (चीजें) अपने-आप बढ़ती हैं।


शब्दार्थ-

अभिवानशीलस्य-अभिवादन(प्रणाम) करने वाले के,

नित्यं-सदैव,

वृद्धोपसेविन:- बड़े-बूढ़ों की सेवा करने वाले के,

चत्वारि- चार,

तस्य-उसके,

आयु - उम्र,

विद्या - पढ़ाई (ज्ञान),

यशः - प्रसिद्धि,

बलम्‌-बल,

वर्धन्ते - बढ़ते हैं।


यं मातापितरौ क्लेशं सहेते सम्भवे नृणाम।

न तस्य निष्कृति: शकया कर्तु वर्षशतैरपि ॥2॥

अन्वय:-

नृणाम्‌ सम्भवे यं. कक्‍लेशं मातापितरा सहेते तस्य (क्लेशस्य) निष्कृति: वर्षशतैरपि न कर्तु शक्या।


सरलार्थ-

मनुष्य के जन्म के समय जो कष्ट माता-पिता सहते हैं, उस कष्ट का निस्तार (बदला) सौ वर्षों में भी नहीं किया (चुकाया) जा सकता।


शब्दार्थ-

नृणाम्‌ - मनुष्यों के,

सम्भवे- पैदा

होने पर,

यं - जिस,

क्लेशं - कष्ट को,

मातापितरौ -माता-पिता,

सहेते - सहते हैं,

त्तस्य - उसका,

निष्कृति: - निस्तार (बदला),

वर्षशततैरपि - सौ वर्षों में भी,

न -नहीं,

कतुं-किया,

शक्‍या - जा सकता।



तयोर्नित्यं प्रियं कुर्यादाचार्यस्थ च सर्वदा।

तेष्वेव त्रिषु तुष्टेषु तप: सर्व समाप्यते ॥3॥

अन्वयः-

तयोः (मातापित्रो)) आचार्यस्य च॒ प्रियं कुर्यात्‌, तेषु त्रिषु एव तुष्टेषु (अस्माक) सर्व तपः समाप्यते।


सरलार्थ-

उन दोनों (माता-पिता) तथा गुरु का सदैव प्रिय करना चाहिए। उन तीनों के संतुष्ट होने पर हमारी सभी तपस्याएँ समाप्त हो जाती हैं। अर्थात्‌ हमें हमारी सभी तपस्याओं का फल मिल जाता है।


शब्दार्थ-

तयोः-उन दोनों का (माता-पिता का),

आचार्यस्य- गुरु का,

च - और,

प्रियं -प्रिय,

कुर्यात्‌ - करना चाहिए,

तेषु - उनमें,

एव - ही,

त्रिषु - तीनों में,

तुष्टेषु - संतुष्ट(होने पर),

सर्व - सभी,

तपः - तपस्या,

समाप्यते - समाप्त हो जाती हैं।



सर्व परवशं दुःखं सर्वमात्मवशं सुखम्‌॥

एतद्ठिद्यात्समासेन लक्षणं सुखदुःखयो: ॥4॥

अन्वय: -

सर्व परवशं दुःखम्‌, सर्वम्‌ आत्मवशं सुखम्‌ (अस्ति), एतत्‌ सुखदुःखयोः समासेन लक्षणम्‌ विद्यात्‌


सरलार्थ-

सब कुछ अपने वश में होना सुख है और सब कूछ दूसरे के वश में होना दुख है। हमें संक्षेप में सुख और दुख का यही लक्षण जानना चाहिए।


शब्दार्थ-

सर्व - सब कुछ,

परवशं -दूसरे के नियन्त्रण में,

दुःखम्‌ - दुख,

आत्मवशं - स्वयं के नियन्त्रण में,

सुखम्‌ - सुख,

एतत्‌ - यह,

समासेन - संक्षेप में,

सुखदुःखयो: -सुख

और दुख का,

लक्षणम्‌ - लक्षण,

विद्यात्‌- जानना चाहिए |



यत्कर्म कुर्वतोऽस्य स्यात्परितोषोऽन्तरात्मन:।

तत्प्रयल्लेन कुर्वीत विपरीत तु वर्जयेत्‌ ॥5॥

अन्वय:-

यत्‌ कर्म कुर्वततः अस्य अन्तरात्मनः परितोषो स्यात्‌ तत्‌ प्रयत्नेन कुर्वीत, विपरीत तु वर्जयेत्‌ |


सरलार्थ-

जिस कार्य को करते हुए अन्तरात्मा को संतुष्टि मिलती हो, उसे प्रयत्नपूर्व्क करना चाहिए। इसके विपरीत (संतुष्टि न होने वाले) कर्म का परित्याग करना चाहिए।


शब्दार्थ-

यत्‌ - जो,

कर्म - कार्य,

कुर्वत: - करते हुए,

अन्तरात्मन: -अन्तरात्मा का,

परितोषो - संतुष्ट,

तत्‌ -वह,

प्रयत्नेन - प्रयत्न पूर्वक,

कुर्वीतत -करना चाहिए,

विपरीतं - इसके विपरीत,




तु - तो,

वर्जयेत्‌ - त्याग देना चाहिए।




दृष्टिपूतं न्यसेत्पादं वस्त्रपूत॑ं जल पिबेत्‌।

सत्यपूतां वदेद्गाचं मन: पूतं समाचरेत्‌ ॥6॥

अन्वय:-

दृष्टिपूतं पादं न्‍्यसेत्‌, वस्त्रपूतं जलं पिबेत्‌,




सत्यपूतां वाचं॑ वदेतूु, मनः पूतं॑ समाचरेत्‌(च)।


सरलार्थ-

दृष्टि द्वारा पवित्र (करके) पैर रखना चाहिए, वस्त्र द्वारा पवित्र (करके) जल पीना चाहिए, सत्य द्वारा पवित्र (करके) वाणी बोलनी चाहिए (तथा) मन द्वारा पवित्र (करके) आचरण करना चाहिए।


शब्दार्थ -

दृष्टिपूतं - दृष्टि से पवित्र करके(अच्छी तरह देखकर),

पादं - पैर,

न्‍्यसेत्‌ -रखना चाहिए,

वस्त्रपूतं - कपड़े से पवित्र करके(छानकर),

जलं॑ -पानी,

पिबेत्‌ - पीना चाहिए,

सत्यपूतां - सत्य से पवित्र करके (सत्य),

वाचं- वाणी,

वदेत्‌ - बोलनी चाहिए,

मनःपूतं -मन से पवित्र करके,

समाचरेत्‌ - आचरण करना चाहिए ।


Related questions

0 votes
1 answer 88 views
0 votes
1 answer 88 views
0 votes
1 answer 77 views

Doubtly is an online community for engineering students, offering:

  • Free viva questions PDFs
  • Previous year question papers (PYQs)
  • Academic doubt solutions
  • Expert-guided solutions

Get the pro version for free by logging in!

5.7k questions

5.1k answers

108 comments

559 users

...