सावित्री बाई फुले
पाठ का परिचय
शिक्षा हमारा अधिकार है। हमारे समाज के कई समुदायों को, जो लम्बे समय तक इससे वंचित रहे, इस अधिकार को पाने के लिए लम्बा संघर्ष करना पड़ा। इसकी प्राप्ति के लिए लड़कियों को विशेष रूप से विरोध् का सामना करना पड़ा। यह पाठ इसी संघर्ष का नेतृत्व करने वाली सावित्री बाई फुले के योगदान पर केन्द्रित है।
उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इयं सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्ट्रस्य प्रथमा कन्यापाठशाला। एका शिक्षिका गृहात् पुस्तकानि आदाय चलति। मार्गे कश्चित् तस्याः उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति। परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमां महिलां जानीथ? इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया।
सरलार्थ: ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी विद्यालय का है। यह सामान्य विद्यालय नहीं है। यह महाराष्ट्र का पहला कन्याओं का विद्यालय है। एक अध्यापिका घर से पुस्तके लेकर चलती है। रास्ते में कोई उसके ऊपर धूल (को) और कोई पत्थर के टुकड़ों को फैंकता है। परन्तु वह अपने मशबूत इरादे से नहीं हटती है। अपने विद्यालय में कन्याओं से हँसी-मशाक के साथ बातचीत करती हुई वह शिक्षण कार्य में लगी होती है। उसकी अपनी पढ़ाई भी साथ ही चल रही है। यह महिला (स्त्री) कौन है? क्या आप लोग इस महिला को जानते हैं? यही महाराष्ट्र की पहली महिला अध्यापिका सावित्री बाई फुले नाम वाली हैं।
शब्दार्थ: भावार्थ:
निर्मितम् बने हुए।
कस्याश्चित् (कस्याः + चित) किसी (का)।
आदाय लेकर।
धूलिम् धूल (को)।
कश्चित् कोई।
प्रस्तरखण्डान् पत्थर के टुकड़ों को।
स्वदृढनिश्चयात् अपने मशबूत निश्चय से।
सविनोदम् हँसी मजाक के साथ।
आलपन्ती बात करती हुई।
अध्यापने शिक्षण कार्य में।
संलग्ना लगी हुई।
स्वकीयम् अपना।
सहैव (सह+एव) साथ ही।
नामधेया नामक (नाम वाली) ।
इयमेव (इय + एव) यही (यह ही)।
जनवरी मासस्य तृतीये दिवसे 1831 तमे ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्रस्य नायगांव-नाम्नि स्थाने सावित्री अजायत। तस्याः माता लक्ष्मीबाई पिता च खंडोजी इति अभिहितौ। नववर्षदेशीया सा ज्योतिबा फुले महोदयेन परिणीता। सोऽपि तदानीं त्रायोदशवर्षकल्पः एव आसीत्। यतोहि सः स्त्रीशिक्षायाः प्रबलः समर्थकः आसीत् अतः सावित्रयाः मनसि स्थिता अध्ययनाभिलाषा उत्सं प्राप्तवती। इतः परं सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती।
सरलार्थ: जनवरी महीने के तीसरे दिन सन् 1831 ईस्वीय वर्ष में महाराष्ट्र के नायगाँव नामक स्थान पर सावित्री ने जन्म लिया। उनकी माता लक्ष्मीबाई और पिता खंडोजी नाम वाले थे। नौ वर्ष की आयु वाली वह ज्योतिबा फुले जी के साथ ब्याही गईं। वह भी उस समय तेरह वर्ष के आयु वाले थे। क्योंकि वह स्त्रीशिक्षा के प्रबल समर्थक थे इसलिए सावित्री के मन में स्थित पढ़ाई करने की इच्छा बढ़ गई। इससे आगे उन्होंने आग्रहपूर्वक अंग्रेजी भाषा की भी पढ़ाई की।
शब्दार्थ: भावार्थ:
ख्रिस्ताब्दे ईस्वीय वर्ष में।
नाम्नि नामक (में)।
अजायत पैदा हुई।
अभिहितौ कहे गए हैं।
नववर्षदेशीया नौ साल वाली।
परिणीता ब्याही गई।
तदानीम् तब।
त्रायोदशवर्षकल्पः तेरह वर्ष की आयु वाले।
यतोहि क्योंकि।
समर्थकः समर्थन करने (मानने) वाले।
अध्ययनाभिलाषा पढ़ने की इच्छा।
उत्सम् बढ़ोत्तरी।
इतः परम् इससे अधिक (इससे आगे/बाद)।
1848 तमे ख्रिस्ताब्दे पुणे नगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथमं विद्यालयम् आरभत। तदानीं सा केवलं सप्तदशवर्षीया आसीत्। 1851 तमे ख्रिस्ताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथकतया तया अपरः विद्यालयः प्रारब्ध्ः।
सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखरं विरोधम अकरोत्। विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलतः केचन नापिताः अस्यां रूढौ सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्रया मार्गे दृष्टं यत् कूपं निकषा शीर्णवस्त्रवृताः तथाकथिताः निम्नजातीयाः काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म। उच्चवर्गीयाः उपहासं कुर्वन्तः कूपात् जलोद्ध्रणं अवारयन्। सावित्री एतत् अपमानं सोढुं नाशक्नोत्। सा ताः स्त्रिायः निजगृहं नीतवती। तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः। अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानतायाः स्वतंत्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।
सरलार्थ: सन् 1848 ईस्वीय वर्ष में पुणे (पूना) नगर में सावित्री ने ज्योतिबा जी के साथ कन्याओं (लड़कियों) के लिए राज्य का पहला विद्यालय प्रारम्भ किया। उस समय वह केवल सत्रह साल की थी। सन् 1851 ईस्वीय वर्ष में छुआछूत के कारण अपमानित किए गए समूह की लड़कियों के लिए अलग से उन्होंने दूसरा विद्यालय आरम्भ किया।
सामाजिक (समाज से सम्बन्ध्ति) बुराइयों का सावित्री ने शोर-शोर से विरोध् किया। विधवाओं के सिरों को मुंडवाने का निराकरण (प्रथा बंद करने के लिए) के लिए वह स्वयं नाइयों से मिलीं। फलस्वरूप कुछ नाइयों ने इस रिवाश में अपनी भागीदारी छोड़ दी। एक बार सावित्री ने देखा कि कुएँ के पास फटे हुए वस्त्रों में लिपटी कथित नीची जाति की कुछ स्त्रियां जल पीने के लिए माँग रही थीं। ऊँची जाति की स्त्रियां मज़ाक करती हुई कुएँ से पानी पिलाने को मना कर रही थीं। सावित्री इस अपमान को सह न सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले आई और तालाब दिखाकर कहा कि इच्छानुसार पानी (घर) ले जाओ। यह तालाब सब लोगों के लिए है। यहाँ से जल (पानी) लेने में जाति का बन्ध्न नहीं है। उन्होंने मनुष्यों की समानता और स्वतंत्रता के पक्ष का समर्थन हमेशा पूरी तरह से किया।
शब्दार्थ: भावार्थ:
कन्यानां कृते कन्याओं के लिए।
आरभत आरम्भ किया।
अस्पृश्यत्वात् छुआछूत के कारण से।
तिरस्कृतस्य अपमानित (का)।
समुदायस्य समूह की।
पृथकतया अलग से।
अपरः दूसरा।
प्रारब्ध्ः आरम्भ किया।
मुखरम् तेश (शोर-शोर से)।
शिरोमुण्डनस्य सिर के मुंडन का।
निराकरणाय दूर करने के लिए।।
साक्षात् स्वयम्।
नापितैः नाइयों से।
फलतः फलस्वरूप।
रूढौ रूढ़ि में, रिवाश में।
सहभागिताम् सहयोग को।
निकषा पास।
शीर्ण-फटा पुराना, चिथड़ा।
वस्त्रवृता (वस्त्र+आवृताः) वस्त्रों से लिपटीं।
निम्नजातीयाः नीची जाति की।
पातुम् पीने के लिए।
याचन्ते स्म माँग रही थीं।
उपहासम् मशाक को।
कुर्वन्तः करते हुए।
जलोद्धधरणम (जल+उद्धरणम्) पानी निकालने को।
अवारयन् रोक रहे थे।
सोढुम् (सह्+तुमन्) सहने के लिये।
नीतवती ले आई।
तडागम् तालाब को।
दर्शयित्वा दिखाकर।
यथेष्टम् (यथा+इषृम्) इच्छानुसार।
नयत ले जाओ।
सार्वजनिकः सभी लोगों के लिए।
समर्थितः समर्थन किया।
'महिला सेवामण्डल' 'शिशुहत्या प्रतिबंधक गृह' इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फूलेदम्पत्योः अवदानम् महत्वपूर्णम्। सत्यशोधकमण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत्। अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडितानां समुदायानां स्वाध्किारान् प्रति जागरणम् इति।
सावित्री अनेकाः संस्थाः प्रशासनकौशलेन सञ्चलित्वती। दुर्भिक्षकाले प्लेग-काले च सा पीडितजनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत्। सहायता-सामग्री- व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत्। महारोगप्रसारकाले सेवारता सा स्वयम् असाध्यरोगेण ग्रस्ता 1897 तमे ख्रिस्ताब्दे निध्नं गता।
साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते। तस्याः काव्यसङ्कलनद्वयं वर्तते 'काव्यफूले' 'सुबोधरत्नाकर' चेति। भारतदेशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधय सावित्रीमहोदयायाः जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्।
सरलार्थ: 'महिला सेवा मंडल', 'शिशुहत्या प्रतिबंधक गृह' आदि संस्थाओं की स्थापना में फूले दम्पती का योगदान महत्त्वपूर्ण है। सत्यशोधक मंडल की गतिविधियों में भी सावित्री बहुत सक्रिय थीं। इस मंडल का उद्देश्य पीड़ित समुदायों को अपने अधिकारों के प्रति जगाना था।
सावित्री ने अनेक संस्थाओं को अपने निर्देशन की कुशलता से संचालित किया। अकाल के समय और प्लेग के समय उन्होंने पीड़ित लोगों की बिना थके और लगातार सेवा की। सहायता की वस्तुओं की व्यवस्था के लिए पूरा प्रयास किया। महारोग (प्लेग) के फैलाव के समय में सेवा में लगी हुई वे स्वयं इस महामारी से पीड़ित हो गईं और सन् 1897 ईo वर्ष में मृत्यु को प्राप्त हो गईं।
साहित्य रचना में भी सावित्री बढ़-चढ़ कर अर्थात आगे हैं। उनके दो काव्य संग्रह हैं-'काव्य फूले' और 'सुबोध् रत्नाकर'। भारत देश में महिलाओं के उत्थान (उन्नति) की स्थिति को गहराई से समझने के लिए सावित्री जी का जीवन परिचय अवश्य पढ़ना चाहिए।
शब्दार्थ: भावार्थ:
प्रतिबंधक रोकने वाला।
स्थापनायाम् स्थापना में।
अवदानम् योगदान।
गतिविधिषु गतिविधियों में
सक्रिया सक्रिय।
उत्पीडितानाम् सताए गए का।
स्वाधिकारान् अपने अधिकारों के (प्रति)।
जागरणम् जगाना।
प्रशासनकौशलेन निर्देशन की कुशलता से।
सञ्चालितवती चलाया।
दुर्भिक्ष काले अकाल के दिनों में।
अश्रान्तम् बिना थके हुए।
अविरतं लगातार (निरन्तर)।
सर्वथा पूरी तरह से।
महारोगप्रसारकाले महान रोग के फैलाव के दिनों में।
सेवारता सेवा में लगी हुई।
ग्रस्ता युक्त।
गता हो गई।
महीयते बढ़-चढ़कर हैं।
काव्यसङ्कलनद्वयंम् दो काव्य संग्रह।
गहनावबोधय गहराई से समझने के लिए।
अध्येतव्यम् पढ़ना चाहिए।